ऋषिकेश 10 अक्टूबर
गजेंद्र सिंह
परमार्थ निकेतन के अध्यक्ष स्वामी चिदानन्द सरस्वती ने विश्व मानसिक स्वास्थ्य दिवस के अवसर पर कहा कि बीमारी चाहे वह शारीरिक हो या मानसिक, बीमारी तो बीमारी है जो हमारे स्वास्थ्य और गतिविधियों को प्रभावित करती है इसलिये उसका इलाज होना चाहिए।
स्वामी जी ने कहा कि जीवन में कई पल ऐसे आते हैं जो हमारे अनुरूप नहीं होते जिससे तनाव उत्पन्न होता है ऐसे में हम धैर्य खोने लगते हैं जिससे कई अन्य मानसिक समस्यायें भी उत्पन्न होने लगती हैं। हम याद रखें कि जीवन अपने आप में बहुत कीमती है। पहली बात जिन्दगी का एक मकसद है, ’’जिन्दगी केवल न जीने का बहाना, जिंदगी केवल न सांसों का खजाना। जिंदगी सिंदूर है पूरब दिशा का, जिंदगी का काम है सूरज उगाना।’’
हमारी पूरी जिन्दगी कई बार कड़ी परीक्षा लेती है। जीवन खुद को सैट करने में ही बीत जाता हैं। सब सेट हो जाता है परन्तु हम खुद अपसेट रहने लगते हैं, निराश, उदास, टूटे हुए, बिखरे हुये रहने लगते हैं। मेरा मानना तो यह है हर समस्या का समाधान है, यू आर द साल्यूशन इसलिये जीवन की हर समस्या को एक चुनौती की तरह लीजिए और आगे बढ़िये। आज के युवाओं को गंभीरता से विचार करने की जरूरत है, मानसिक रोगों के प्रति हमें जागरूक होना होगा, तभी अपने राष्ट्र और समाज को एक नया आकार प्रदान कर सकते हैं।
स्वामी जी ने कहा कि मन स्वस्थ तो तन स्वस्थ, व्यस्त, स्वस्थ और मस्त रहने के लिये रोज़ योग करें और मौज करें, ध्यान करें और धन्यवादी बनें। स्वामी जी ने माँ शबरी रामलीला के विषय में जानकारी देते हुये कहा कि परमार्थ निकेतन गंगा तट पर वनवासी और आदिवासी कलाकारों द्वारा प्रस्तुत माँ शबरी रामलीला का महत्वपूर्ण पहलू यह है कि यह उनकी कलात्मक प्रतिभा और सांस्कृतिक धरोहर को मान्यता और सम्मान प्रदान करना है। परमार्थ निकेतन कलाकारों को एक ऐसा मंच प्रदान करता है जहाँ पर वे अपनी कला और संस्कृति को दुनिया के सामने प्रस्तुत कर सकते हैं। साथ ही विविधता में एकता रूपी मानवता के उच्च आदर्शों को प्रस्तुत किया जाता है। माँ शबरी रामलीला में कलाकार अपनी सांस्कृतिक धरोहर को मंच पर जीवंत करते हैं जो न केवल मनोरंजन का स्रोत है, बल्कि समाज के लिए एक महत्वपूर्ण संदेश भी है। जिसमें भगवान राम और माँ शबरी के बीच के प्रेम, भक्ति और समर्पण का अद्वितीय वर्णन है। माँ शबरी जिनकी प्रभु श्रीराम के प्रति अपार भक्ति और प्रेम था, इस रामलीला के माध्यम से यह संदेश दिया जा रहा है कि सच्चा प्रेम और भक्ति, जाति, धर्म और समुदाय की सीमाओं से परे है। यह समरसता और सद्भाव का अनूठा प्रयास है। माँ शबरी रामलीला का यह आयोजन एक उदाहरण प्रस्तुत करता है कि कैसे कला और संस्कृति के माध्यम से सामाजिक परिवर्तन और एकता लाई जा सकती है। हम अपनी विविधताओं को स्वीकार कर एक सामंजस्यपूर्ण और सशक्त समाज का निर्माण कर सकते हैं।
मैनेजिंग ट्रस्टी सैस फाउंडेशन व अध्यक्ष, माँ शबरी रामलीला, शक्ति बक्शी ने कहा कि स्वामी चिदानन्द सरस्वती के आशीर्वाद से हम प्रतिवर्ष परमार्थ निकेतन के दिव्य वातावरण में माँ शबरी रामलीला का यह आयोजन करते हैं जो वास्तव में एक ऐसी मिसाल पेश करता है, जिससे समाज में एकता, समरसता, और सद्भाव को बढ़ावा देने के साथ ही भारत की समृद्ध कला और संस्कृति की शक्ति से सभी का परिचय भी कराती है। इस आयोजन के लिए मुख्य संरक्षक माँ शबरी रामलीला वीरेन्द्र सचदेवा, सचिव चरणजीत मल्होत्रा, डा मुकेश कुमार, विश्व मोहन शर्मा, सुमित कुमार, आचार्य दीपक शर्मा महत्वपूर्ण योगदान प्रदान कर रहे हैं।