मुनिकीरेती 14 नवम्बर
गजेंद्र सिंह
मारुति, मंत्र, मानस, माला के माध्यम से हम जैसे साधारण लोक संसारियों के लिए अंतकरण चतुष्टय है जो ब्रह्म विचार का अधिकार देता है। आठवें दिन की कथा करते हुए मुरारी बापू ने कहा कि त्रिभुवन दादा के अनुसार हम जैसे संसारियों के लिए भजन ब्रह्म विचार है। बापू ने भगवान राम द्वारा अपनी चरण पादुका को भरत को सौंपने के रहस्य को बड़े सुंदर और सहज तरीके से वर्णन करते हुए कहा कि राजा और साधू को बिना चरण पादुका के नहीं चलना चाहिए। बापू ने श्रोताओं को आज मारूति का बड़े सुंदर दर्शन कराते हुए सराबोर कर दिया। बापू ने अनुष्ठान की विफलता के पीछे केवल दुराशा बताया। कथा के क्रम में ताड़का वध से राम के अवतार कार्य का आरंभ बताया। उन्होंने कहा कि विश्वामित्र जी राम को देखकर भ्रम की स्थिति में थे परन्तु ताड़का वध के पश्चात उन्हें पूर्ण विश्वास हो गया की राम ही पूर्ण ब्रह्म है। मुरारी बापू ने श्रोताओं को बताया कि गीता में भगवान कृष्ण ब्रह्म विचार कहते हैं कि यज्ञ और दान को कभी भी विस्मृत नहीं करना चाहिए। कथा क्रम में दशरथ पुत्रों के नामकरण किया। बापू ने संसार में साधू संगती और साधू विचार को अति दुर्लभ बताया है। आज की कथा में बापू ने सीता स्वयंवर आदि का वर्णन कर श्रोताओं को भावविभोर कर दिया।