मुनिकीरेती 12 नवम्बर
गजेंद्र सिंह
शिवजी तेरी जटा में बहती है गंग धारा। राम कथा के छठे दिवस की कथा में मुरारी बापू ने श्रोताओं को गंगा अवतरण की कथा से स्नान कराया। उन्होंने कथा सुनाते हुए कहा कि जब राजा दिलीप के पुत्र भगीरथ को यह ज्ञात हुआ कि मेरे पूर्वजों का उद्धार गंगा के द्वारा होगा तो उन्होंने मां गंगा के अवतरण की कृपा को प्राप्त करने के लिए कठोर तपस्या करनी शुरू कर दी। उन्होंने ब्रह्मदेव को प्रसन्न किया। भागीरथ की घोर तपस्या को देखकर मां पार्वती ने भी मां गंगा को समझाया कि वह अपनी जिद छोड़ दें और पुण्य कार्य को करें । तब मां गंगा ने कहा कि मैं धरती पर उतर तो जाऊं लेकिन मेरा वेग बहुत प्रचंड होगा जिसे संभालना धरती के बस की बात नहीं होगी अनायास ही बहुत सारे जीव जंतु मारे जाएंगे । इसके लिए सिर्फ महादेव ही हैं जो मेरे वेग को संभाल सकते हैं । तब भगीरथ ने महादेव से प्रार्थना करी । महादेव ने प्रसन्न होकर मां गंगा को अपनी जटा में धारण करना स्वीकार किया । महादेव ने फिर अपनी एक जटा को खोलकर गंगा की लहरों को धीरे धीरे धरती पर उतारा। भगीरथ ने गंगा की कृपा से अपने पूर्वजों का उद्धार किया। हरिद्वार में जिस प्रकार गंगा सप्त ऋषि के लिए सात धाराओं में अपना आकार बदल लेती है उसी प्रकार जन जाग्रति एवं लोकहित के लिए कथा की यजमान सात बहनों के मूल में ब्रह्म विचार है। बापू ने कहा कि राम कथा हमें प्रवीण तो बनाती है साथ ही में यह हमें प्रमाणिक भी बनाती है। उन्होंने कहा परमात्मा हमें अवसर देता है उसे चूको नहीं। जहां से मिले ब्रह्म विचार को ग्रहण कर उसको पचाने का प्रयास करो। मुरारी बापू ने कहा कि शास्त्र सम्मत है कि तीर्थ का पुण्य फल दर्शन, स्पर्श, स्नान, पान और स्मरण से भी मिलता है। प्रसंग में बापू ने कहा प्रभु के सन्नमुख की यात्रा में अगर मन में कोई दूषित विचार आये तो संयम और संतोष पूर्वक केवल दृष्टा मात्र बने रहो उस विचार में लिप्त न हो जाओ। बापू ने कथा को अयोध्या में राजा दशरथ अपने दूतों से विदेह जनक के बारे में जानकारी लेते हुए विश्राम दिया।