

प्रयागराज 24 जनवरी
गजेंद्र सिंह
महाकुम्भ के दिव्य अवसर पर परमार्थ निकेतन शिविर, प्रयागराज में न्याय विभाग द्वारा ’‘हमारा संविधान-हमारा स्वाभिमान’’ अद्भुत कार्यक्रम का आयोजन किया गया। जिसमें परमार्थ निकेतन के अध्यक्ष, स्वामी चिदानन्द सरस्वती, माननीय न्याय और कानून मंत्री, भारत सरकार, अर्जुन राम मेघवाल, अध्यक्ष, डिवाइन शक्ति फाउंडेशन, डा साध्वी भगवती सरस्वती, न्याय विभाग के अधिकारी, लाॅ और विधि के विद्यार्थी और अनेक विशिष्ट अतिथियों का पावन सान्निध्य प्राप्त हुआ। यह कार्यक्रम समावेशिता, समता और समानता का संदेश पूरे विश्व को दे रहा है।
सेके्रटरी, न्याय विभाग, आर के गोयल ने सभी विशिष्ट अतिथियों का अभिनन्दन करते हुये कहा कि यह आयोजन संविधान में निहित मूल्यों के प्रति हमें जागरूक करता है। एक वर्ष पहले हमने इस कार्यक्रम की शुरूआत की थी और आज महाकुम्भ के अवसर पर आयोजित यह कार्यक्रम एक सफल वर्ष के पूर्ण होने का प्रतीक है। इस बार का महाकुम्भ मेला बहुत महत्व है क्योंकि यह मेला हमारे संविधान में निहित शाश्वत संबंधों को उजागर कर रहा है।
माननीय न्याय और कानून मंत्री, भारत सरकार, श्री अर्जुन राम मेघवाल जी ने कहा कि आज का दिन महत्वपूर्ण है क्योंकि आज ही के दिन तिरंगे को राष्ट्र ध्वज के रूप में स्वीकार किया था। तिरंगे के तीन रंग केसरिया रंग साहस, वीरता और बलिदान का प्रतीक है जो भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के दौरान शहीद हुए वीरों और बलिदानियों की याद दिलाता है। सफेद रंग, शांति, सत्य और अहिंसा का प्रतीक है। यह महात्मा गांधी के सिद्धांतों और भारतीय समाज में शांति की आवश्यकता को दर्शाता है। यह रंग भारतीय समाज में सामूहिक एकता और भाईचारे को भी दर्शाता है। हरा रंग, प्रगति, समृद्धि और कृषि का प्रतीक है। यह देश की हरी-भरी भूमि और किसानों की कड़ी मेहनत को दर्शाता है, यह रंग प्राकृतिक संपत्ति और पर्यावरण के प्रति सम्मान को भी दर्शाता है।
तिरंगे के मध्य में नील चक्र भी होता है, जो धर्मचक्र के रूप में हैं और यह समय और निरंतरता का प्रतीक है। इसमें 24 तिल्लियाँ हैं जो 24 गुणों यथा संयम, स्वास्थ्य, शान्ति, त्याग, शील, सेवा, क्षमा, प्रेम, मैत्री, बंधुत्व, संगठन, कल्याण, समृद्धि, उद्योग, सुरक्षा, नियम, क्षमता, अर्थ, नीति, न्याय, सहकार, सहकारिता, कर्तव्य और बुद्धिमŸाा को आत्मसात करने का संदेश देता है। इन दिव्य गुणों को आत्मसात करने के लिये हम पूज्य स्वामी जी के साथ और उनके आशीर्वाद के लिये परमार्थ निकेतन शिविर आये हैं। संविधान हमें बहुत सारी शिक्षायें देता है, यह हमारा जीवित दस्तावेज है।
स्वामी चिदानन्द सरस्वती ने कहा कि संगम के इस पावन तट पर आज इस देश के संगम को देखना का अवसर प्राप्त हो रहा है। इसे माननीय, कर्मठ, कर्मयोगी प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी जी और उत्तरप्रदेश के माननीय मुख्यमंत्री श्री योगी आदित्यनाथ जी ने कर दिखाया।
स्वामी जी ने कहा कि जब जीवन राष्ट्र को समर्पित होता है तो हम वेतन के लिये नहीं बल्कि वतन के लिये कार्य करते हैं। जब वतन के लिये कार्य करते हैं तो संविधान बचा रहता है।
स्वामी जी ने कहा कि इस धरती की खूबसूरती इन्सानों से हैं परन्तु इन्सान की खूबसूरती इंसानियत से है। हमारा संविधान ही हमारा स्वाभिमान है जो हमें शिक्षा देता है कि न हम बटेंगे न बाटेंगे, न हम कटेंगे न काटेंगे, न हम लड़ेंगे न लड़ायेंगे। संगम से जाते जाते हम इस देश के संगम को बनाये रखने का मंत्र लेकर जाये।
हमारा संविधान, हमारा गौरव है। भारत का संविधान भारत की आत्मा है, जो लोकतंत्र, समानता और न्याय के सिद्धांतों पर आधारित है। हमारा संविधान, सब समान, सब का सम्मान का संदेश देता है। हमें एकता, सौहार्द्रता और समरसता का संगम बनाये रखने के लिये दिलों को जोड़ना होगा और संविधान की मर्यादा में रहना होगा। हम खुद भी संविधान की मर्यादा में रहें और दूसरों को भी इसके लिये प्रेरित करें।
स्वामी जी ने कहा कि संविधान ही इस देश का समाधान है। संविधान हमें यह शिक्षा देता है कि जाति-पाति भेदभाव, ऊँच-नीच, बड़े-छोटे की दीवारों को तोडें, और दरारों को भरते हुये आगे बढ़ें।
डा साध्वी भगवती सरस्वती जी ने कहा कि मैने पूरे विश्व में कोई ऐसा देश नहीं देखा जो वसुधैव कुटुम्बकम् और सर्वे भवन्तु सुखिनः का बात करता हैं। संविधान हमारे राष्ट्र का स्तंभ है। आध्यात्मिक दृष्टि से मन्दिर हमारी संस्कृति का आधार स्तंभ है उसी प्रकार हमारा राष्ट्र भी एक मन्दिर है और हमारा संविधान एक जीवन शास्त्र है जो हमें बताता कि कैसे हमें अपने साथ, दूसरों के साथ व्यवहार करना चाहिये। हमें स्वतंत्रता तो प्राप्त हो गयी; हमें स्वराज्य प्राप्त हो गया परन्तु अपने भीतर की स्वतंत्रता मिलना भी बहुत जरूरी है। महाकुम्भ हमें भीतर के स्वराज्य के दर्शन प्रदान करता है। उन्होंने युवाओं का आह्वान करते हुये कहा कि हम जैसे हैं स्वयं को उसी रूप में स्वीकार करें और अपने मूल, मूल्य और परम्पराओं पर गर्व करें।
