

ऋषिकेश 3 मार्च
गजेंद्र सिंह
संयुक्त राष्ट्र विश्व वन्यजीव दिवस के अवसर पर हर साल 3 मार्च को हमें वन्यजीवों और पौधों के महत्व को समझने और उनके संरक्षण के लिए जागरूकता फैलाने का एक अवसर प्रदान करता है। इस दिन का उद्देश्य न केवल वन्यजीवों की रक्षा के प्रति प्रतिबद्धता को बढ़ावा देना है, बल्कि यह हमें यह भी याद दिलाता है कि वन्यजीवों का संरक्षण हमारे जीवन के साथ-साथ इस पृथ्वी पर जीवन के अस्तित्व के लिए अत्यंत आवश्यक है।
इस वर्ष विश्व वन्यजीव दिवस का विषय है “वन्यजीव संरक्षण वित्त: लोगों और ग्रह में निवेश”, जो हमें यह सोचने पर मजबूर करता है कि हम वित्तीय संसाधनों के माध्यम से वन्यजीवों के संरक्षण में किस प्रकार योगदान दे सकते हैं।
परमार्थ निकेतन के अध्यक्ष स्वामी चिदानंद सरस्वती ने कहा कि वन्यजीवों और प्रकृति से हमारा संबंध केवल जीविका का नहीं बल्कि जीवन का भी है। यह केवल एक भौतिक या पर्यावरणीय जिम्मेदारी नहीं है, बल्कि यह हमारे आंतरिक शांति और संतुलन से जुड़ा हुआ है।
स्वामी जी ने यह भी कहा कि वन्यजीवों का संरक्षण केवल हमारे बाहरी पर्यावरण की रक्षा करने के लिए नहीं है, बल्कि यह हमारे अंदर की प्रकृति और मनुष्यत्व के प्रति जागरूकता का परिणाम है। यदि हम अपने भीतर के प्रकृति के साथ एकत्व स्थापित कर पाते हैं, तो हम बाहर की दुनिया को भी संरक्षित और सशक्त बना सकते हैं।
स्वामी चिदानंद ने यह भी कहा कि वन्यजीवों की रक्षा करने के साथ-साथ हमें मानवता के प्रति अपनी जिम्मेदारी को भी समझना होगा और यही हमारे आंतरिक और बाह्य जीवन के संतुलन को बनाए रखने का मार्ग है।
संयुक्त राष्ट्र का यह संदेश कि हमें वन्यजीव संरक्षण के लिए वित्तीय निवेश करने की आवश्यकता है, एक बेहद महत्वपूर्ण पहलू है। लेकिन यह केवल बाहरी निवेश का मुद्दा नहीं है। जब हम किसी कार्य में निवेश करते हैं, तो वह केवल भौतिक रूप से ही नहीं बल्कि मानसिक और आत्मिक रूप से भी निवेश होना चाहिए।
स्वामी जी ने कहा कि प्रकृति के साथ सामंजस्यपूर्ण जीवन ही सच्ची आध्यात्मिकता है। प्रकृति और वन्यजीवों का संरक्षण हमारे धर्म का हिस्सा है। हमारे पूर्वजों ने हमें यह सिखाया कि पृथ्वी, जल, वायु, अग्नि और आकाश इन सभी तत्वों का संतुलन बनाए रखना हमारा कर्तव्य है। जब हम इनका संरक्षण करते हैं, तो हम वास्तव में उन धार्मिक शिक्षाओं का पालन कर रहे होते हैं।
