

ऋषिकेश 10 अप्रैल
गजेंद्र सिंह
भगवान महावीर का जीवन और उनका संदेश आज के युग में अत्यंत प्रासंगिक है। उन्होंने अहिंसा, अपरिग्रह और आत्मसाधना का आदर्श उदाहरण प्रस्तुत किया। उनका जीवन इस बात का प्रमाण है कि सच्चा सुख भोग में नहीं, बल्कि भीतर की शांति में है।
भगवान महावीर ने राजसी सुख-सुविधाओं को त्यागकर आत्मसाक्षात्कार का मार्ग चुना। उन्होंने तप, ध्यान और मौन के माध्यम से आत्मा को शुद्ध करने की साधना की। उनका जीवन इस बात का प्रमाण है कि सच्चा सुख भोग में नहीं, बल्कि भीतर की शांति में है।
स्वामी चिदानन्द सरस्वती ने भगवान महावीर के जियो और जीने दो के सिद्धान्त को आत्मसात करने का संदेश देते हुये कहा कि अब समय आ गया कि हम जियो और जीने दो के साथ जीवन दो को भी आत्मसात करे।
उन्होंने कहा कि भगवान महावीर द्वारा प्रतिपादित नवकार महामंत्र केवल एक धार्मिक पाठ नहीं है, यह एक जीवन दर्शन है। यह हमें केवल पूजा नहीं, बल्कि सद्भाव और संयम का भाव सिखाता है।
आज की युवा पीढ़ी तेजी से तकनीकी और वैश्विक युग की ओर बढ़ रही है, जहाँ व्यस्तता है, प्रतिस्पर्धा है, और कई बार भटकाव भी है। तीव्र प्रतिस्पर्धा ने जीवन की गति को अत्यधिक तेज कर दिया है। सोशल मीडिया, करियर की दौड़, और लगातार बदलती जीवनशैली ने युवाओं को एक ओर जहाँ अनंत अवसर दिए हैं, वहीं दूसरी ओर मानसिक तनाव, उलझन और जीवन के उद्देश्य को लेकर भटकाव भी पैदा किया है।
ऐसे समय में भगवान महावीर का जीवन और उनका संदेश अत्यंत प्रासंगिक हो है। उन्होंने आत्मसंयम, अहिंसा, और भीतर की शांति को सर्वोपरि बताया। उन्होंने संदेश दिया कि “मनुष्य की सबसे बड़ी विजय स्वयं पर विजय है,” आज के युवाओं के लिए एक महत्वपूर्ण प्रेरणा है।
यदि आज का युवा उनके आदर्शों को अपनाए, तो वह न केवल अपने जीवन को दिशा दे सकता है, बल्कि समाज में भी सकारात्मक परिवर्तन ला सकता है। भगवान महावीर का जीवन आज के युग में आत्मचिंतन और आंतरिक विकास की रोशनी बनकर सामने आता है।
आज जब पूरी दुनिया संघर्ष, अशांति और अराजकता के दौर से गुजर रही है, ऐसे समय में भगवान महावीर का दर्शन अधिक प्रासंगिक हो गया है। उन्होंने किसी धर्म विशेष के लिए नहीं, बल्कि संपूर्ण मानवता के कल्याण के लिए जीया। उनका धर्म “ध्यान” था, उनका पूजन “करुणा”, और उनकी साधना “अहिंसा” थी।
भगवान महावीर जयंती हमें केवल अतीत की स्मृति नहीं कराती, बल्कि भविष्य की दिशा दिखाती है। हमें यह तय करना है कि क्या हम केवल पूजन और उत्सव तक सीमित रहेंगे, या उस दर्शन को जीवन में अपनाकर समाज को नई दिशा देंगे। आइए, हम सभी अपने-अपने जीवन में भगवान महावीर के सिद्धांतों को आत्मसात करें, और एक ऐसा समाज बनाएं जहाँ कोई हिंसा न हो, कोई द्वेष न हो, और हर प्राणी को जीने का सम्मान मिले।
